भारत में थाइरोइड के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है | थाइरोइड दो प्रकार का होता है जिन्हें हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है |
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर 10 में से 1 युवा हाइपोथायरायडिज्म की बीमारी से ग्रसित है | ये समस्या भारत में मधुमेह की भांति बड़ी होती जा रही है |
जानिए क्या हैं: थायराइड के लक्षण
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ये समस्या होने का खतरा अधिक होता है | कुछ रिपोर्ट्स में ये बात भी सामने आई है कि महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा थाइरोइड होने की सम्भावना 3 गुणा तक अधिक होती है | उम्र बढ़ने के साथ इसकी सम्भावना भी बढ़ती जाती है |
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हाइपोथायरायडिज्म
थाइरोइड ग्रंथि शरीर के लिए जरूरी थायरोक्सिन नाम के हॉर्मोन का निर्माण करती है | ये हॉर्मोन शरीर के बहुत से कार्यों के लिए जरूरी होता है | ये हॉर्मोन शरीर के मेटाबोलिज्म को नियंत्रण में रखता है |
लेकिन जब कुछ कारणों की वजह से थाइरोइड ग्रंथि के द्वारा इस हॉर्मोन का स्राव सामान्य की तुलना में कम हो जाता है तो उसे हाइपोथायरायडिज्म कहा जाता है |
इससे शरीर का मेटाबॉल्ज़िम रेट औसत से बहुत कम हो जाता है | हाइपोथायरायडिज्म की समस्या को अंडर एक्टिव थाइरोइड भी कहा जाता है |
हाइपोथायरायडिज्म होने के पीछे बहुत से कारण हो सकते हैं | यह थाइरोइड ग्रंथि में समस्या, पिट्यूटरी ग्रंथि या हाइपोथैलेमस की किसी समस्या की वजह से भी हो सकता है | आइये जानते हैं हाइपोथायरायडिज्म के कारण |
हाइपोथायरायडिज्म के कारण

आयोडीन की कमी से
भारत और एशिया के कुछ देशों में व पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में आयोडीन की कमी हो जाती है | आयोडीन की कमी होना भी इस समस्या के मुख्य कारणों में एक है |
आयोडीन की कमी से नवजात बच्चों में भी हाइपोथाइरोइड, बहरापन और दिमागी कमजोरी जैसे लक्षण भी हो सकते हैं | (1)
भारत में आयोडीन की कमी का बड़ा कारण यहाँ की धरती में आयोडीन की कमी होना है | भारत सरकार के द्वारा लोगों को आयोडीन युक्त नमक प्रयोग करने के लिए जागरूक बनाने के लिए समय समय पर अभियान भी चलाए जाते हैं |
आयोडीन की कमी को खाने पीने की चीजों में आयोडीन प्रयोग करके पूरा किया जा सकता है | आयोडीन की कमी से ब्रेन डैमेज जैसी गंभीर समस्या भी हो सकती है |
पूरी दुनिया में भी ब्रेन डैमेज का सबसे बड़ा कारण आयोडीन डेफिशियेंसी डिसऑर्डर्स को माना जाता है | (2)
भारत सरकार की तरफ से आयोडीन की कमी को दूर करने के लिए नेशनल आयोडीन डेफिशियेंसी डिसऑर्डर्स कण्ट्रोल प्रोग्राम (NIDDCP) 1992 में शुरू किया गया था |
2015-16 में 414 जिलों का सर्वेक्षण किया गया जिनमें 337 जिलों में आयोडीन डेफिशियेंसी डिसऑर्डर्स के प्रसार का खतरा 5 % से ज्यादा था | (3)
केवल भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका जैसे देशों में भी आयोडीन की कमी को खाने पीने की चीजों और आयोडीन युक्त नमक से दूर करने का प्रयास लगातार किया जा रहा है |
आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग करके थाइरोइड के खतरे को टाला जा सकता है | लेकिन केवल आयोडीन ही इस समस्या का इकलोता कारन नहीं है | आइये जानते हैं दूसरे किन किन कारणों से हो सकती है ये बीमारी |
सर्जरी के कारण
हाइपोथायरायडिज्म के बड़ा कारण, हाइपरथायरायडिज्म का इलाज भी हो सकता है | हाइपरथायरायडिज्म में थायरोक्सिन का स्त्राव सामान्य की तुलना में अधिक होता है | इसके इलाज के लिए कई बार डॉक्टर सर्जरी के द्वारा थाइरोइड ग्रंथि का कुछ हिस्सा या पूरी ग्रंथि को निकाल देते हैं | ऐसा केवल बहुत जरूरी होने की स्थिति में ही किया जाता है |
लेकिन सर्जरी के बाद कई बार थाइरोइड ग्रंथि बहुत कम या बिलकुल भी थायरोक्सिन का निर्माण नहीं कर पाती | जिससे हाइपोथायरायडिज्म की समस्या पैदा हो जाती है|
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पीयूष ग्रंथि में चोट
पीयूष (पिट्यूटरी) ग्रंथि से निकलने वाले थाइरोइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (TSH) थाइरोइड ग्रंथि तक पहुंचते हैं और यही TSH थाइरोइड ग्रंथि से टी 4 (एल-थायरोक्सिन) और टी 3 (ट्राईआयोडोथायरोनाइन) का निर्माण करवाते हैं |
लेकिन कई बार ब्रेन सर्जरी या दिमाग में लगी किसी चोट के कारणवश पीयूष ग्रंथि प्रयाप्त मात्रा में थाइरोइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन का निर्माण नहीं कर पाती | जिससे खून में TSH का स्तर कम होने की वजह से थाइरोइड ग्रंथि भी T4 और T3 हॉर्मोन का निर्माण नहीं कर पाती | जिससे हाइपोथायरायडिज्म की समस्या हो जाती है |
हाशिमोटो थयरॉइडिटिस के कारण
हाशिमोटो थयरॉइडिटिस एक प्रकार का अनुवांशिक रोग है | ये एक तरह का ऑटो इम्यून रोग है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही थाइरोइड ग्लैंड को नुक्सान पहुँचाना शुरू कर देती है | पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में इसका खतरा 10 गुणा तक ज्यादा होता है |
भारत और अमेरिका में भी हाशिमोटो हाइपोथायरायडिज्म के बड़े कारणों में से एक है | इस बीमारी का नाम जापान के डॉक्टर हकारु हाशिमोटो के नाम पर रखा गया है जिन्होंने 1912 में पहली बार इस बीमारी को खोजा था | (4)
इस बीमारी की वजह से थाइरोइड ग्रंथि का आकार बढ़ने लगता है जिसे गोइटर या घेंघा कहते हैं | आकार बढ़ने की वजह से ग्रंथि हॉर्मोन का निर्माण नहीं कर पाती | जिससे थाइरोइड की समस्या हो जाती है | इस तरह हाशिमोटो थयरॉइडिटिस हाइपोथायरायडिज्म की बीमारी के बड़े कारणों में एक है |
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गर्भावस्था में लिम्फोसाईटिक थयरॉइडिटिस के कारण
महिलाओं में गर्भावस्था के बाद इस तरह के थाइरोइड की आशंका अधिक होती है | इसे पोस्टपार्टम थयरॉइडिटिस भी कहा जाता है | थयरॉइडिटिस एक प्रकार की अवस्था है जिसमें थयरॉइड ग्लैंड में सूजन हो जाती है |
सूजन का कारण लिम्फोसाइट नाम की शवेत रक्त कणिकाएं होती है | इस तरह के थयरॉइडिटिस का पता इसके लक्षणों से नहीं चल पाता | इसलिए गर्भावस्था के समय इसका टेस्ट करवाया जाता है |
गर्भवती महिलाओं की इसकी सम्भावना बहुत अधिक होती है और 100 में से 8 महिलाओं में ये हो सकता है | थाइरोइड के इस प्रकार में सूजी हुई थाइरोइड ग्रंथि पहले अधिक हॉर्मोन का स्राव करती है और बाद में बहुत कम हॉर्मोन स्राव करती है |
इस तरह का थाइरोइड 12 से 18 महीने में सामान्य हो जाता है, लेकिन कई बार थाइरोइड ग्लैंड सही से काम नहीं कर पाती और कम हॉर्मोन स्राव की वजह से हाइपोथायरायडिज्म की बीमारी हो जाती है |
रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट के कारण
हाइपरथायरायडिज्म में जब अधिक हॉर्मोन का स्राव होने लगता है तो ऐसी स्थिति में कई बार रेडियोएक्टिव आयोडीन ट्रीटमेंट दिया जाता है | इस तरह के इलाज के बाद भी हाइपोथायरायडिज्म का खतरा हो सकता है |
ऐसा थाइरोइड ग्रंथि की कार्यक्षमता और आयोडीन की मात्रा पर भी निर्भर करता है | ऐसी स्थिति में अगर रेडियोएक्टिव आयोडीन इलाज के छह महीने के बाद भी अगर थाइरोइड ग्रंथि ठीक से काम करना शुरु नहीं करती तो इससे अंडर एक्टिव थाइरोइड की समस्या हो जाती है |
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